A poem about changing the centres A poem about changing the centres
कई सुने हुए, तो कई सुनाये हुए, यह किस्से, कहानियाँ बन जाते हैं...! कई सुने हुए, तो कई सुनाये हुए, यह किस्से, कहानियाँ बन जाते हैं...!
लोगों से क्या, अब खुद से अंजान रह जाते हैं शीशे में भी हम, नज़र नहीं आते हैं|| लोगों से क्या, अब खुद से अंजान रह जाते हैं शीशे में भी हम, नज़र नहीं आते हैं||
कभी करीब से देखो मौत को परवानो कि तरह, तो उसके दामन में गिरे अश्क में भीग जाने को दिल हो ही जायेगा। कभी करीब से देखो मौत को परवानो कि तरह, तो उसके दामन में गिरे अश्क में भीग जाने ...
झूम झूम कर सावन आया बरखा यह मन भावन लाया रिमझिम पावस की बूंदों से मन मयूर नर्तन कर गाया ! झूम झूम कर सावन आया बरखा यह मन भावन लाया रिमझिम पावस की बूंदों से मन मयूर नर्...
जब हम करते हैं खेती धरती अनाज है देती उस पर ही गुजर बसर है भूखे मरने का डर है तुम धरती को पानी प... जब हम करते हैं खेती धरती अनाज है देती उस पर ही गुजर बसर है भूखे मरने का डर है...